निरमल पत्ता नीसरै, कीना मिनखां कोड। 
जेम सोडसी ओरणौ, आई हरियल ओड।।202।। 
                    विकसै झाझी बेलड़ी, बिरछां दिस विस्तार। 
                      लुलगी फूलां लाज में, जोबन रै झणकार।।203।। 
                    बिरछां लागै बेलडी, एम गलै छिब छांह। 
                      साजन रै जिम सुन्दरी, भच घालै गल बांह।।204।। 
                    वेलां बसंत बिरछ री, जोबन सखरै जौर। 
                      गहणै जोबन गोरड़़ी, दीपै जांणक दौर।।205।। 
                    बाजै झीणौ वायरौ, हरखै फागण हेत। 
                      झाझी उडै गुलला ज्यूं, रै थलवट री रेत।।206।। 
                    घुरता चंग गवाड़ मां, गावै फागण गीत। 
                      फबिया दरखत फूलड़ा, पकै बसंती प्रीत।।207।। 
                    निमझर छाजै नीम्बड़ै, सरसे फूल सुगन्ध। 
                      सभा विचालै सांतरी, छाज जियां कव छन्द।।208।। 
                    खेतां छांगी खेजड़ी, सदनव पत्तां सीर। 
                      प्रोढ़ा पीवर रौ जियां, ओढ्यौ हरियल चीर।।209।। 
                    स्वालख कैरसुहावणा, बत चोल घण फूल। 
                      फूल गुलाबी जिम फबै, दारा हरित दुकूल।।210।। 
                    ग्रीखम 
                      लूबा बाजण लागवी, मरुत अगन हुय मेल। 
                      काया सागै कनपटी, भूंडौ वालण भेल।।211।। 
                    पीवण सीतल पालरौ, वड़लै छायां वास। 
                      कांदौ रोटी कांक़ड़ां, रिच्छा लूवां रास।।212।। 
                    पसु पंछी पुरसारथी, खटकै आवै खींच। 
                      जमिया आसण जोर रा, बिरछां छायां बीच।।213।। 
                    भला भला ही भूलगा, पालौ चलणौ पंथ। 
                      जमिया छीयां नीम्बजित, डरता कामण कंत।।214।। 
                    टोटौ जल सोटौ करै, नित नित भटकै नाह। 
                      लारै लूवां लागवी, थलवट दुखां न थाह।।215।। 
                    आंधी आय उतावली, जोबन बिरछां जौर। 
                      मन री काढ़ै मोकली, दबै न दरखत दौर।।216।। 
                    नाड्यां तिरसां नीसरै, तिरसा मरै तलाव। 
                      आय'र लेवै आसरौ, धरापूत रौ ध्राव।।217।। 
                    बड़ बैठा पाना बिचै, उड उड पंछी आय। 
                      चुगणौ चुगौ बिसारियौ, लूवां डर लुक जाय।।218।। 
                    हांपै भैस्यां हालती, सूखा देख तलाव। 
                      जीव बचावै बिरछजित, धेन  अरू घण ध्राव।।219।। 
                    तपती लूवां तावड़ै, औठारू अरडाय। 
                      थावस लेवै थलवटां, अंध्रप हेटै आय।।220।। 
                    धधक अगन धोरां धकै, रिव रोयण बडरीस। 
                      दरखत री दोरप दिनां, लोगा सरण लहीस।।221।। 
                    बरखा ज्यूं बरखावियौ, तप रेलण रिव तेज। 
                      गहन आसरौ गोरधन, हां इब तरवर हेज।।222।। 
                    अधिक दुखी ऐवालिया, गाडर अजा घुमाय। 
                      कूंतां गुजर करावता, खोखा लूंग खवाय।।223।। 
                    देखौ पांणी दीवड़ी, पकियौ लूवां पांण। 
                      अंध्रप ही ऐवालियां, ठावौ थावस ठांण।।224।। 
                    पड़तै तावड़ पवन रौ, कठै नहीं रिसकार। 
                      हुलक पीड़ ग्रीखम हुवां, ओखद द्वुम आधार।।225।। 
                    नामी बारै नीम्बड़ौ, झूंपड़ मांही जौर। 
                      पालर ठंडौ पीण नै, दुखं न ग्रीखम दौर।।226।। 
                    राबड़ छाछां रायतौ, कांदै रोटी कौर। 
                      तिरपत करसी तपत मां, आमलवाणौ और।।227।।                    
                    पावस 
बरसालै छक बोधितरु, तकै विकासी तान। 
उदर सोडसी ओपमा, पतला चिलकै पान।।228।। 
                    बड़ री साखां बांकली, फेल रही चौफेर। 
                      पावस रुत पांणी पड़ै, टप टप लागी टेर।।229।। 
                    बरसालै सावण बसू, अधिक थयौ आड़ंग। 
                      खेतां रेतां खेजड़ी, दाझै लूंग द्वुमंग।।230।। 
                    बरसालै तर बोरड़ी, झाड पेमली जौर। 
                      सद्य सांपड़ी सुन्दरी, चित लेवै जिम चोर।।231।। 
                    काली पेड़ी काम री, छोटे पान छबीह। 
                      सावण बांवल सोवणा, फूलां आभ फबीह।।232।। 
                    फसरै कैयार फोगड़ा, थिर बरसालै थट्ट। 
                      इरणी खिरमी आमली, गूलर द्वुम गैघट्ट।।233।। 
                    आम रोहिड़ौ आकड़ौ, पिचवय जाल पलास। 
                      मचिया जोबन मांयनै, अदगी पावस आस।।234।। 
                    आसपालौ इरंडियौ, धिकियो आगै धोक। 
                      गूगल सरेस गूंदियां, थट बरसालै थोक।।235।। 
                    ओपै बिरखा उललिलयां, तरू नीम्बडी तन्न। 
                      भीज्योड़ी जिम भामणी, मोवलै देख्यां मन्न।।236।। 
                    बरसालै मां बांवली, ओपै सुखमा पएम। 
                      ओढ़े हरियल ओरणौ, जुबती काली जेम।।237।। 
                    हरियाली रेतां हुई, खपियां खेतां खोध। 
                      नीर भरीजै नाडियां, लेत हिबोला होद।।238।। 
                    पेड़ां मजबूती पकड़, सै डाला सैंजोर। 
                      आय'र लेवै आसरौ, पंछीड़ा अठपौर।।239।। 
                    रूंखां रूप सरोपरी, चौमासै घण चाव। 
                      सूखंता द्वुम सम्भलै, सजल होवियां सांव।।240।। 
                    प्रीतम जिम घ आविया,ं विरहण सोग विहाय। 
                      पांणी रौ पायां परस, हरा विटप व्है जाय।।241।। 
                    घन गाजै छाजै गिगन, दामणियां दमकंत। 
                      रिमझिम बिरखा रूंखड़ां, हरियल रूप हसंत।।242।। 
                    विद्या ज्यूं ज्यूं वापरै, आवै अकल उजाल। 
                      बरखै ज्यूं ज्यूं बादली, हरखै द्वुम हरियाल।।243।। 
                    खेतां हरियल खेज़़ड़ौ, मसती मां मसकूल। 
                      जाणक सरवर मांजियां, फरबवै पोयण फूल।।244।। 
                    पगां विचालै घासपत, खितरू आभ खरेह। 
                      पगचम्पी प्रतिपाल री, कींकर जेम करेह।।245।। 
                    सरवर रहियौ सांकड़ै, पालर पसु पीवंत। 
                      द्वुम हेटै मझ दिवस मां, पाय बिसाई पंत।।246।। 
                    बैपारां छायं बिरछ, तावड़ करवा टाल। 
                      ऊभा हेटै आयनै, गेडी लियां गुवाल।।247।। 
                    जाय'र पूगौ झांपड़ी, बाजर खेजड़ बीच। 
                      हरिया खेत सुहावणा, खट लेवै मन खींच।।248।। 
                    व्होली ऊभी बोरड़ी, माठां थाटां मांय। 
                      सलवै फसलां सावऊं, हरित खेत हरखाय।।249।। 
                    पांणी झरतौ पांनड़ां, खार जहर बरखाय. 
                      बांवल खेतां बीच मां, फसलां हाण पुगाय।।250।। 
                    बिरखा आछी बरसियां, जोरां लील जवार। 
                      अड़गौ खेजड़ आयनै, सिट्यां तणौ सवार।।251।। 
                    बिरछ, लटूंबी बेलड़ी, रे तांता पसराय। 
                      साजन रै जिम सुन्दरी, लाजत गल लग जाय।।252।। 
                    चीबड़ियां घण चाव री, कोड करण कालींग। 
                      मोटां रा मन डिगमगै, तरस रया तरसींग।।253।। 
                    सौर मचावै साकलै, पंछी कांकड़ पैल। 
                      करसौ समियौ कोडमै, खेतां जीतण खेल।।254।। 
                    सरद 
सरदी आयां सोचमा, धरसुत धारै मून। 
सर सर धूजै सरद मा, साखी हेटै सून।।255।। 
                    काठौ हिवड़ौ द्वुम करै, झाटौ हीमत झेल। 
                      सरद तणा संताप नै, सहणौ तरवर सेल।।256।। 
                    नखै जाय न निनंग रै, स्वारथियौ संसार। 
                      भिड़कर आधा भाजवै, देख छांव दीदार।।257।। 
                    नर पसुंवा सूं निकरमौ, गास्वारथ दै गाल। 
                      कर वै स्वारथ करणै, पेट हेत पंपाल।।258।। 
                    आतां सरदी आगली, धर सुत डर घांसूह। 
                      ओस रूप मां आवणा, एम रूंख आसूह।।259।। 
                    पड़ पड़ सरदी पानड़ा, हुयगा सगती हीण। 
                      विखा मांय जिम वाणियौ, खातौ पीतौ खीण।।260।। 
                    गुम सुम सरदी मां घमौ, रूंख इसांन रहंत। 
                      हांण चिंत मां वणिक हिव,त उणियारौ उतरंत।।261।। 
                    मरण जलम रै मारगां, सै झेलै संताप। 
                      झड़गा पत्ता झाड़ रा, पतझड़ रै परताप।।262।। 
                    माटी 
                      मिनकपणा रौ मुलक मा, तकड़ी माटी तोल। 
                      नमन करै रिख देव नर, माटी छै अनमोल।।263।। 
                    कामू माटी कारमै, उपज हुवं अनुकूल। 
                      ऊसर मां ना ऊगसी, फसल घास द्वुम फूल।।264।। 
                    उपजाऊ माटीअवर, महि समतल मैदान। 
                      आछी बिरखा आसरै, पनपै पौधा पान।।265।। 
                    रैती राजस्थान री, माड़ी रूंखां मेल। 
                      आय र माटी आपगा, करै अगूणी केल।।266।। 
                    पोचा नहीं पठार ही, पांणी रै परताप। 
                      वनापतातियां बासतै, छिता लागवै छाप।।267।। 
                    असर सदा ही आवणी, ओल कुलां अखियात। 
                      टाबर होसी टांटिया, मांदी जिणरी मात।।268।। 
                    घाना मां दरखत घमा, अजब पंखेरू आय। 
                      दरसण नांही दरखतां, तार मरुस्थल थाय।।269।। 
                    राती घूसर रेतड़ी, भूरी पील वरान। 
                      कालू काली कछारी, माटी राजस्थान।।270।। 
                    रेती राजस्थान मां, आथूणी उतराद। 
                      रिंद रोही ना रूंखड़ा, यायावर नै याद।।271।। 
                    दिखणी राजस्थान मां, माटी लाल मिलेह। 
                      इधक काली अगुण मां, खुसियां रुंख खिलेह।।272।। 
                    जलवाय 
धोरा आथूणी धरा, आभा गिरी अगूण। 
उतरादी रेती अधिक, दिखणी डूंगर दूण।।273।। 
                    तापमान ऊंचौ तठै, नमीं हवा मां नांय। 
                      बिन विरखा वन री कमी, तावड़ घणौ तपाय।।274।। 
                    अरबी सागर री अठै, मानसून री मोल। 
                      सारै आडावाल सकौ, गपकै होवै गोल।।275।। 
                    माया धती मेह री, उपज तणौ आधार। 
                      वन विहूण साल्वै वसा, मार दुकालां मार।।276।। 
                    हाची बिरखा जित हुवै, उपजै रूंख अलेख। 
                      हाडौती मेवाड़ अर, दर ढूंढाड़ी देख।।277।। 
                    पतझड़ कांटादार तर, उसण कटिबंध एथ। 
                      सालर सागवान सुसक, सजल ढाक संकेत।।278।। 
                    थिर सेखावाटी थिरा, मरूधर देस मिझांन। 
                      किल्लत पांणी कारणै, रूंखां कटगी रान।।279।। 
                    जल समीर आछा जठै, समरथरूंखां साख। 
                      कायातणी निरोगता, खायां भली खुराक।।280।। 
                    कम बिरखा रै कारणै, टोटैटोई टूंक। 
                      थलवट खेतर मां थया, रूखा सूखा रूंख।।281।। 
                    धरातल 
                      नर कीरत नखनेत तै, हितकारी हालता। 
                      हद ती अवनीतल हुवै, बदली रूंखां वात।।282।। 
                    परकत रै परताप सूं, साजै भांजै सून। 
                      तूर धरातल तालकै, निकस विकस नामून।।283।। 
                    नद कांठै घाटी नखै, महिसुत रहै न मोल। 
                      रूंखां सूं रलियावणौ, डूंगरियां रौ डोल।।284।। 
                    धापा कर बिरखा धरा, इदकी रूंखां आस। 
                      पड़ता नै ज्यूं पकड़लै, अड़ता गिरी आकास।।285।। 
                    करियो रूंखा कारणै, डूंगर हरियौ डील। 
                      कण ढकै जिम कामणी, हांचल लोवड़ लील।।286।। 
                    अद्री परबत ऊपरां, गैघट घेर घुमेर। 
                      माथै जेम मजार रै, चादर धर चौफेर।।287।। 
                    अद्री बिन अधरावणा, परबत अवर पठार। 
                      चादर बिन लागै चखां, मोली जेम मजार।।288।। 
                    दर ढूंढाड़ी देखलौ, मेवाड़ी मेवात। 
                      सीकर लागै सोहमा, साखी रै संगात।।289।। 
                    मारवाड़ रै मांयनै, भाखर विटपर विहूण। 
                      भूंडा लागै भायला,ं कहवै आछा कूण।।290।। 
                    आछा लागै आपणा, घर समतल द्वुम धाम। 
                      कागद मालै कोरिया, चोखा जिम चितराम।।291।। 
                    मगरां परबत मारगां,धोरां घाटी धेड़। 
                      नद नाला झीलां नहर, कीरत तरवर केड़।।292।। 
                    अगला अलगा ऊगिया, परबत मालै पेड़। 
                      जूना वसतर रा जियां, टांका दिया उधेड़।।293।। 
                    पाला ऊपरां पींपली, थलवट सोभा थाय। 
                      सरवर लागै सोहणा, पत्री हरित पसाय।।294।। 
                    कीरत कैरां कारणै, मगरा री घण मान। 
                      सागर मां टापू समा, थावस पावण थान।।295।। 
                    तण भखणा हिंसक पसु, दौड़ै कांकड़ देस। 
                      आवै रूंखां आसरै, वन रा जीव विसेस।।296।। 
                    सरणौ देखौ सासतौ, भख रिछ्या भालेह। 
                      वाधापौ आछौ वनां, पसु अलेख पालेह।।297।। 
                    एक एक सूं अड़ रया, विटप अटवी वचाल। 
                      सजगी जीव सिकारियां, आ डर लेवं आल।।298।। 
                    ऊभा दरखत अड़ौथड़, निजर न बार निहार। 
                      फिरै सिकारी रांचता, सोरौ नांय सिकार।।299।। 
                    खेरोई ना खोसियौ, थल धर धन थांरोह। 
                      पापीड़ा लारौ पकड़, मिरागं क्यूं मारोह।।300।। 
                    खेतर रेती खेजड़ां, छडा अवर छेटेह। 
                      चौकड़ियां भर चापलै, हिरणछियां हेटेह।।301।। 
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